हम सभी अपने देश के गौरवशाली अतीत पर गर्व करते हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि हमें यह जानकारी मिली कैसे? हमारे पूर्वजों के जीवन , उनकी नीतियों , उनके शासन , उनके समाज के बारे में हम आज कैसे जान पाते हैं?
हमने अपने पुराने blog में ही बताया है कि हमारे इतिहास को समझने के लिए कई स्रोत हैं—जैसे ताम्रपत्र, शिलालेख, साहित्य, सिक्के, विदेशी यात्रियों के द्वारा लिखी गयी पुस्तकें। लेकिन आज हम एक ऐसे स्रोत के बारे में बात करेंगे, जो न सिर्फ इतिहास का सटीक दस्तावेज है, बल्कि हमें हमारे पूर्वजों के प्रशासन और समाज की असली तस्वीर भी देते है—ताम्रपत्र।
कॉपर प्लेट—अरे ये वही ताँबे की चादरें हैं जिन पर पुरखों ने अपनी बातें खोद-खोद के लिखी हैं। सच कहूँ तो ये हमारे इतिहास की असली चमकती धरोहर हैं। जो कुछ भी इन (ताम्रपत्र) पर लिखा गया, वक़्त की धूल भी उसे मिटा नहीं पाई, आज भी वो हमें वैसे का वैसा (साफ-साफ) पढ़ने को मिल जाएगा।

ताम्रपत्र क्या होते हैं?
ये बात तो हम सभी जानते हैं कि पुराने समय में कागज़ उपलब्ध नहीं थे। लिखने के लिए ताड़पत्र, भोजपत्र या पत्थर का प्रयोग होता था। लेकिन जब किसी आदेश, दान या समझौते को लंबे समय तक सुरक्षित रखना होता था, तब हमारे पूर्वज उसे ताँबे की पट्टिकाओं(चादर) पर लिखते थे। इन्हीं को आज हम ताम्रपत्र कहते हैं।
कॉपर प्लेट अक्सर आयताकार होते थे। इन पर लिपि को छेनी और हथौड़ी की मदद से खोदकर लिखा जाता था। कई बार ये कई पट्टिकाएँ एक छल्ले से जुड़ी होती थीं और उस छल्ले पर राजा की मुहर लगाई जाती थी, ताकि उसमें कोई छेड़छाड़ न कर सके।
ताम्रपत्र बनाने की प्रक्रिया –हमारे पूर्वजों की कला
हमने कई कॉपर प्लेट देखे हैं और उनमें एक अद्भुत कलात्मकता पाई है। बनाने की प्रक्रिया कुछ इस प्रकार होती थी—
ताँबे की पट्टिका तैयार करना—
ताँबे को गलाकर उससे समतल और चिकनी चादर बनाई जाती थी।
लिपि खुदना—
ब्राह्मी, नागरी, कुटिल, तमिल जैसी प्राचीन भाषाओं में संदेश खोदा जाता था।
छल्ला और मुहर लगाना –
सभी पट्टिकाओं को लोहे या ताँबे के छल्ले से जोड़कर, उस पर राजा की मुहर लगा दी जाती थी।

संरक्षण–
चूँकि ताँबा सदियों तक खराब नहीं होता है, तो ये दस्तावेज समय के साथ भी सुरक्षित रहते थे। जो कि आज भी हम उसे अच्छे से देख और पढ़ सकते हैं।
कॉपर प्लेट का महत्व –क्यों ये हमारे लिए ख़ास हैं?
हम सभी को इस बात को समझना चाहिए कि ताम्रपत्र केवल धातु के टुकड़े नहीं हैं, बल्कि ये हमारे देश के प्राचीन जीवन की झलक हैं।
1. ऐतिहासिक साक्ष्य
कॉपर प्लेट आज भी लगभग उसी स्थिति में मिलते हैं जैसे हजार साल पहले थे। इनसे हमें तत्कालीन समाज की सटीक जानकारी मिलती है।
2. भूमि-दान और प्रशासन
हमने देखा है कि ज़्यादातर तांबे की पट्टिका भूमि-दान से जुड़े होते थे। इनमें लिखा होता था कि राजा ने किसे, कब और क्यों भूमि दी। इससे हमें उस समय के प्रशासनिक ढाँचे की अच्छे से समझ मिलती है।
3. धार्मिक और सांस्कृतिक झलक
दान अक्सर मंदिरों, मठों और ब्राह्मणों को दिए जाते थे, जिससे हमें पता चलता है कि धर्म का समाज में कितना महत्व था।
4. राजनीतिक इतिहास
इनमें शासकों के नाम, उपाधियाँ, राज्य की सीमाएँ, और कई बार उनके युद्ध और विजय का भी विवरण मिलता है।
5. भाषा और लिपि का अध्ययन
हमारे देश की भाषाओं और लिपियों के विकास को समझने के लिए ताम्रपत्र बहुत मददगार हैं।
ताम्रपत्रोंकॉपर प्लेट में प्रयुक्त लिपि और भाषाएँ
ब्राह्मी लिपि – प्रारंभिक काल में।
नागरी लिपि – मध्यकाल में।
कुटिल लिपि – पूर्वी भारत में।
ग्रंथ और तमिल लिपि – दक्षिण भारत में।
भाषा के रूप में संस्कृत का उपयोग अधिकतर होता था, लेकिन कुछ ताम्रपत्रकॉपर प्लेट प्राकृत, तमिल और कन्नड़ में भी मिलते हैं।
ताम्रपत्रों के प्रमुख उदाहरण – हमारे देश की अमूल्य धरोहर
1. दमोदरपुर ताम्रपत्र (बंगाल)
ये गुप्तकाल के हैं और इनमें भूमि-दान का विस्तृत विवरण है। समुद्रगुप्त और कुमारगुप्त के शासन का स्पष्ट उल्लेख मिलता है।
2. नालंदा ताम्रपत्र (बिहार)
पाल वंश के राजाओं द्वारा नालंदा विश्वविद्यालय और बौद्ध विहारों को दिए गए दानों का प्रमाण।
3. जुन्नर ताम्रपत्र (महाराष्ट्र)
सातवाहन वंश के समय के, जो भूमि-दान के सबसे पुराने प्रमाणों में गिने जाते हैं।
4. मंदरगिरी ताम्रपत्र (कर्नाटक)
चालुक्य और राष्ट्रकूट काल के , जिनसे उस समय के दक्षिण भारतीय प्रशासन की जानकारी मिलती है।
5. ताम्रलिप्त ताम्रपत्र (पश्चिम बंगाल)
यहाँ के ताम्रपत्रतांबे की पट्टिका समुद्री व्यापार और धार्मिक संस्थाओं को दान का वर्णन करते हैं।
कॉपर प्लेट में दी जाने वाली सामान्य जानकारी
शासक का नाम और वंश – जिससे राजनीतिक इतिहास स्पष्ट होता है।
दान का कारण – धार्मिक, पुण्य, यज्ञ, विजय उत्सव आदि।
भूमि का विवरण – क्षेत्र, सीमा, माप और आस-पास के गाँव।
लाभार्थी का नाम – ब्राह्मण, मंदिर, मठ आदि।
शाप और आशीर्वाद – दान को स्थायी रखने के लिए धार्मिक चेतावनी।
प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए ताम्रपत्र का महत्व
कॉपर प्लेट हमें प्राथमिक स्रोत (Primary Source) के रूप में मिलते हैं।
गुप्तकाल, पालकाल और चालुक्य-राष्ट्रकूट काल को समझने के लिए ये बेहद ज़रूरी हैं।
प्रशासन, समाज, धर्म और अर्थव्यवस्था की सीधी जानकारी देते हैं।
ताम्रपत्रों की खोज और संरक्षण – हमारा कर्तव्य
आज भी हमारे देश के कई संग्रहालयों और अभिलेखागारों में ताम्रपत्र सुरक्षित रखें हैं, जैसे—
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) (Archaeological Survey of India) के संग्रह
कोलकाता, दिल्ली, चेन्नई, मुंबई के संग्रहालय
विश्वविद्यालयों के पुरातत्व विभाग
अब हम सभी का दायित्व है कि हम इस धरोहर को आने वाली पीढ़ियों तक सुरक्षित पहुँचाएँ।
- लौकिक साहित्य – हमारी ज़िंदगी, समाज और सोच (Final part)A
- लौकिक साहित्य – प्राचीन भारत का सांस्कृतिक इतिहास (Part 2)
- लौकिक साहित्य – प्राचीन भारत का सांस्कृतिक इतिहास (Part 1)
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- प्राचीन भारत में शिलालेख | Inscriptions in Ancient India
हमारा अतीत, हमारी पहचान
हमने देखा कि ताम्रपत्र सिर्फ ताँबे की पट्टिकाएँ नहीं हैं, बल्कि ये हमारे अतीत की जीवन गाथाएँ हैं। इनमें हमारे देश के राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक और सांस्कृतिक जीवन की झलक है।
जब हम ताम्रपत्रों को देखते हैं, तो ऐसा लगता है जैसे हमारे पूर्वज हमसे सीधे संवाद कर रहे हों। यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम अपने इस धरोहर को सहेजें और आने वाली पीढ़ियों को इसके बारे में बताएं।