इतिहास के स्रोत – भाग 2 (प्राचीन भारत के सुराग)

पुरातात्विक और साहित्यिक साक्ष्य

🔰 इंट्रो——

पिछली बार वाले ब्लॉग (भाग 1-  पुरातात्विक और साहित्यिक साक्ष्य) में ये तो क्लियर हो गया था कि इतिहास सिर्फ दादी-नानी की कहानियाँ या पौराणिक चमत्कारों का पिटारा नहीं है। असली बात तो ये है कि इतिहास जैसा कुछ है, तो वो है सबूतों के दम पर – चाहे वो किताबों में छिपा हो या ज़मीन के नीचे। हमने वहाँ पर ये भी समझा था कि साहित्यिक और पुरातात्विक स्रोत कितने ज़रूरी हैं इतिहास को समझने के लिए।

अब इस बार (भाग 2) में थोड़ा और गहराई में चलते हैं – जैसे कि टीला आखिर है क्या बला, खुदाई-फुदाई होती कैसे है, साइंटिफिक टेस्टिंग का क्या रोल है, और कैसे सिक्के, ताम्रपत्र, शिलालेख या वेद-पुराण वगैरह हमें अपने इतिहास से जोड़ते हैं।

Read more

प्राचीन भारतीय सिक्के(इतिहास की धातु में गढ़ी कहानियाँ)

प्राचीन भारतीय सिक्के - इतिहास, प्रकार और महत्व

प्राचीन भारतीय सिक्के: मौर्य, गुप्त और हिन्द-यवन से लेकर कुषाण तक — प्रकार, प्रतीक और उनसे मिली ऐतिहासिक जानकारी संक्षेप में जानें। और पढ़ें।

प्राचीन भारतीय इतिहास के आधुनिक लेखक – जब हमने अपने अतीत को फिर से देखा

हम सब जानते हैं कि भारत का इतिहास अत्यंत समृद्ध है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि प्राचीन भारत के इतिहास को आधुनिक ढंग से किसने लिखा? किसने हमारी पुरानी परंपराओं, शास्त्रों और सभ्यता को शोध और प्रमाणों के साथ दुनिया के सामने रखा?

आज हम उन्हीं लेखकों की बात करेंगे, जिन्होंने भारत के अतीत को समझने और समझाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।


प्राचीन भारतीय इतिहास के लेखक शुरुआत कहां से हुई?

हमारे शिक्षित पूर्वजों ने महाकाव्य, पुराणों और जीवन चरित्रों जैसे ग्रंथों में इतिहास को सहेज कर रखा था। लेकिन आधुनिक ढंग से अनुसंधान की शुरुआत अठारहवीं सदी के उत्तरार्द्ध (18वीं सदी का दूसरा भाग 1750-1800) से हुई।


औपनिवेशिक (ब्रिटिश) दृष्टिकोण और उनका योगदान

1765 से 1857 के बीच की बात करें तो…

Read more