लौकिक साहित्य – हमारी ज़िंदगी, समाज और सोच (Final part)A


नमस्कार दोस्तों,
हमने अपने पिछले दो ब्लॉग्स में यह समझा कि लौकिक साहित्य क्या है और इसके प्रमुख स्रोत कौन-कौन से हैं। हमने यह भी जाना कि महाकाव्य, पुराण, नाटक, नीति साहित्य और विज्ञान संबंधी ग्रंथों ने प्राचीन भारत के ज्ञान को कितना समृद्ध किया।

अब सवाल उठता है –
👉 क्या लौकिक साहित्य केवल पढ़ने या मनोरंजन का साधन था,

आज इस अंतिम भाग (Part 3) में हम विस्तार से देखेंगे कि लौकिक साहित्य ने चिकित्सा, समाज, शिक्षा, कला, अर्थव्यवस्था, धर्म और संस्कृति को किस प्रकार प्रभावित किया। यहाँ हर ग्रंथ और रचना के बारे में आपको विस्तृत जानकारी मिलेगी – रचयिता, काल, विषयवस्तु, विशेषता और परीक्षा से संबंधित तथ्य।


(1) चिकित्सा और स्वास्थ्य शास्त्र

चरक संहिता (1st–2nd Century CE लगभग)

  • आचार्य चरक ने लिखा
  • लगभग 1st–2nd Century CE (कुषाण काल के आसपास)
  • इसमें शरीर, खाना, दवाइयाँ और बीमारियों की बातें हैं
  • चरक को “Father of Indian Medicine” कहा जाता है।
  • इसमें 8 शाखाओं का उल्लेख है, जिन्हें “अष्टांग आयुर्वेद” कहते हैं।
  • चरक संहिता को आयुर्वेद का सबसे महत्वपूर्ण ग्रंथ (मूल ग्रंथ) माना जाता है।
  • इसमें केवल औषधियों का ही नहीं, बल्कि जीवन जीने के तरीकों का भी विस्तृत वर्णन किया गया है।

यह हमें बताता है कि हमारा प्राचीन भारतीय समाज सिर्फ रोगों का इलाज ही नहीं करता था, बल्कि स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए जीवनशैली पर भी ध्यान देता था।

सुश्रुत संहिता (5th–6th Century BCE लगभग)

  • आचार्य सुश्रुत ने लिखा
  • लगभग 5th–6th Century BCE (बौद्ध काल के आसपास)
  • शल्य चिकित्सा (Surgery), शल्य उपकरण, अंग प्रत्यारोपण, शल्य चिकित्सा की तकनीक।
  • सुश्रुत को “Father of Surgery” कहा जाता है।
  • सुश्रुत संहिता विश्व का सबसे प्राचीन शल्य चिकित्सा ग्रंथ है।
  • इसमें 300 से अधिक शल्य उपकरणों और 100 से अधिक ऑपरेशनों का वर्णन है।
  • इसमें नाक की प्लास्टिक सर्जरी (Rhinoplasty) तक का उल्लेख मिलता है।

यह तथ्य इतना अद्भुत है कि आधुनिक काल में भी पश्चिमी विद्वानों ने सुश्रुत की इस खोज को सराहा।

अष्टांगहृदयम् (7th Century CE लगभग)

  • आचार्य वाग्भट द्वारा
  • रचना काल – लगभग 7वीं शताब्दी ईस्वी।
  • आयुर्वेद का अत्यंत प्रसिद्ध और व्यावहारिक ग्रंथ।
  • सीधे तौर पर कहा जाय तो चरक और सुश्रुत की बातें आसान भाषा में समझाया गया है।
  • इसमें आयुर्वेद की 8 शाखाओं (अष्टांग आयुर्वेद) का वर्णन मिलता है।
  • ग्रंथ की भाषा सरल और संक्षिप्त है, ताकि विद्यार्थी और वैद्य आसानी से समझ सकें।
  • आचार्य वाग्भट ने इसमें यह सिखाया कि – “स्वास्थ्य की रक्षा ही असली धन है।

यह ग्रंथ केवल रोगों के उपचार के लिए नहीं, बल्कि स्वस्थ और संतुलित जीवन जीने की कला बताने के लिए भी लिखा गया।

आयुर्वेद का सामाजिक महत्व

  • चरक और सुश्रुत संहिताओं से हमें यह भी पता चलता है कि हमारे प्राचीन भारत का समाज केवल आध्यात्मिक या धार्मिक नहीं था, बल्कि विज्ञान और स्वास्थ्य पर भी उतना ही ध्यान देता था।
  • गाँवों और नगरों में औषधियों का प्रयोग आम बात थी और वैद्य समाज में सम्मानित स्थान रखते थे।

(2) कामशास्त्र – जीवन और कला का दर्शन

वात्स्यायन का कामसूत्र (3rd–4th Century CE)

  • रचयिता– वात्स्यायन
  • काल– लगभग 3rd–4th Century CE (गुप्त काल)
  • विषय— दांपत्य जीवन, विवाह, प्रेम, स्त्रियों की स्थिति, कला, नृत्य और संगीत।

कामसूत्र को अक्सर केवल शारीरिक संबंधों का ग्रंथ मान लिया जाता है, लेकिन यह उससे कहीं अधिक व्यापक है।इसमें यह बताया गया है कि एक संतुलित जीवन कैसे जिया जाए – जिसमें प्रेम, कला और सामाजिक संबंधों का सामंजस्य हो। कामसूत्र हमें यह समझाता है कि प्राचीन भारतीय समाज ने जीवन को सिर्फ धर्म या राजनीति के दायरे में नहीं रखा, बल्कि जीवन को एक कला (Art of Living) के रूप में देखा।


(3) धर्मशास्त्र और सामाजिक व्यवस्था

मनुस्मृति (200 BCE–200 CE)

  • रचयिता : ऋषि मनु
  • काल– लगभग 200 BCE–200 CE
  • विषयवस्तु– विवाह, उत्तराधिकार, जाति व्यवस्था, दंड विधान, राजा और प्रजा के कर्तव्य।
  • विशेषता‐ सबसे प्राचीन और प्रभावशाली स्मृति साहित्य।

मनुस्मृति भारतीय समाज की सामाजिक और विधिक संरचना का सबसे पुराना दस्तावेज़ है। इसमें समाज के लिए नियम, विवाह की परंपरा और दंड व्यवस्था का उल्लेख है।

याज्ञवल्क्य स्मृति (3rd–5th Century CE)

  • इसमें उत्तराधिकार कानून, न्याय व्यवस्था और समाजशास्त्र का वर्णन है।
  • यह ग्रंथ आधुनिक भारतीय विधि-व्यवस्था के विकास में भी महत्वपूर्ण माना जाता है।

नारद स्मृति, पाराशर स्मृति और बृहस्पति स्मृति

  • (4th CE) नारद स्मृति — आचार-व्यवहार और न्याय व्यवस्था।
  • पाराशर स्मृति — क्योंकि इसमें विशेषकर कलीयुग के लिए नियम बताए गए हैं इसीलिए इसे Kali Yuga Dharma Smriti भी कहा जाता है।
    • 6th–8th Century CE (गुप्तोत्तर से प्रारंभिक मध्यकाल)
    • कलीयुग में आचरण के नियम।
    • विवाह, शुद्धि-अशुद्धि, दंड और धर्म।
  • बृहस्पति स्मृति — समाज और धर्म के नियम।
    • 6th–7th Century CE (गुप्तोत्तर काल)
    • विशेष रूप से सिविल और क्रिमिनल लॉ, ऋण, उत्तराधिकार, दंड व्यवस्था और प्रशासन,
    • इसे धर्मशास्त्रों में न्याय पर सबसे विस्तृत ग्रंथ माना जाता है।

(4) नीति और राजनीति साहित्य

कौटिल्य का अर्थशास्त्र (4th BCE)

  • आचार्य चाणक्य (कौटिल्य/विष्णुगुप्त) ने 4th BCE में अर्थशास्त्र नामक महान ग्रंथ की रचना की थी।
  • यह केवल राजनीति या प्रशासन पर नहीं, बल्कि पूरे जीवन को व्यवस्थित करने की कला सिखाता है।
  • इस ग्रंथ में राज्य संचालन, अर्थव्यवस्था, कर व्यवस्था, कृषि, व्यापार, युद्ध नीति और गुप्तचरों की भूमिका तक का विस्तृत वर्णन मिलता है।
  • सीधे शब्दों में कहा जाए तो – यह उस समय का “राजनीति और प्रबंधन का पाठ्यपुस्तक” था।
  • कौटिल्य ने इसमें साफ बताया कि –मजबूत अर्थव्यवस्था के बिना राज्य टिक नहीं  सकता।
  • राजा को न्यायप्रिय होना चाहिए और प्रजा की सुरक्षा ही उसकी पहली जिम्मेदारी है।
  • गुप्तचर और जानकारी इकट्ठा करने की कला शासन के लिए जरूरी है।

इस ग्रंथ की खासियत यह है कि यह केवल राजा या प्रशासक के लिए नहीं, बल्कि आम आदमी के जीवन और समाज के लिए भी मार्गदर्शन देता है।

कामंदक का नीतिसार (5th–7th Century CE)

  • रचयिता – आचार्य कामंदक।
  • गुप्तोत्तर काल, लगभग 5वीं से 7वीं शताब्दी ईस्वी।
  • Subject – राजनीति, राज्य-शासन और नीति।
  • यह ग्रंथ कौटिल्य के अर्थशास्त्र की परंपरा को आगे बढ़ाता है।
  • इसमें राजा, मंत्री, युद्ध-नीति, दंड-नीति और राजकाज की व्यावहारिक बातें बताई गई हैं।
  • इस ग्रंथ के माध्यम से हमें गुप्तोत्तर कालीन समाज और राजनीति की झलक मिलती है।
  • नीतिसार यह संदेश देता है कि – सही नीति और शासन से ही राज्य मजबूत होता है।

चाणक्य नीति (4th BCE)

  • आचार्य चाणक्य (कौटिल्य/विष्णुगुप्त) द्वारा लिखी गई।
  • रचना काल – लगभग 4th Century BCE (मौर्य काल के आसपास)।
  • यह ग्रंथ जीवन के लिए व्यावहारिक मार्गदर्शन देता है।
  • इसमें राजा और प्रजा दोनों की आचार संहिता बताई गई है।
  • राजा को न्यायप्रिय, दूरदर्शी और प्रजा का रक्षक होना चाहिए।
  • प्रजा को भी अनुशासन, कर्तव्य और सत्यनिष्ठा का पालन करना चाहिए।
  • इसमें दोस्ती, दुश्मनी, शिक्षा और धन के सही उपयोग जैसी बातों का भी वर्णन है।
  • चाणक्य नीति को केवल शासन या राजनीति का ग्रंथ नहीं, बल्कि रोज़मर्रा की जिंदगी के लिए “जीवन दर्शन” माना जाता है।
  • 👉 यह हमें बताती है कि सच्चा बल धन या सत्ता में नहीं, बल्कि ज्ञान, नीति और अच्छे आचरण में है।

भर्तृहरि का नीतिशतक (5वीं शताब्दी ई.)

  • लेखक- भर्तृहरि, संस्कृत के महान कवि, दार्शनिक और संभवतः एक राजा भी थे।
  • काल – लगभग 5वीं शताब्दी ई., जो भारत के गुप्त काल (लगभग 4वीं से 6वीं शताब्दी) के आसपास आता है।
  • ग्रंथ का स्वरूप 100 छोटे-छोटे श्लोकों का संग्रह, जिसे नीतिशतक कहा जाता है।
  • विषय— जीवन के नैतिक और व्यवहारिक नियम, नीति, सदाचार, मित्रता, ज्ञान, क्रोध, लोभ आदि पर आधारित।
  • प्रमुख संदेश–
  • जीवन में मितभाषिता और संयम आवश्यक है। ज्ञान को सर्वोपरि माना गया है। सत्संग और सही आचरण से व्यक्ति की उन्नति होती है। tक्रोध, अहंकार और लोभ को विनाशकारी बताया गया है।
  • महत्त्व- नीतिशतक को संस्कृत साहित्य में नीति-काव्य का उत्कृष्ट उदाहरण माना जाता है।
  • संदर्भ- भर्तृहरि के तीन ‘शतक’ प्रसिद्ध हैं — नीतिशतक, शृंगारशतक, और वैराग्यशतक।

हितोपदेश (14th Century CE लगभग)

  • हितोपदेश (14th Century CE लगभग) (यह काल मध्यकालीन भारत का था, जब उत्तरी भारत में दिल्ली सल्तनत (तुगलक वंश – मुहम्मद बिन तुगलक, फिर फिरोज शाह तुगलक) का शासन था।)
  • लेखक – नारायण पंडित
  • काल – लगभग 14वीं शताब्दी CE
  • भाषा – संस्कृत
  • आधार – पंचतंत्र की परंपरा पर आधारित
  • प्रकार – नीति साहित्य (कहानियों के माध्यम से शिक्षा)
  • संरचना (4 भाग) –
    • मित्रलाभ (मित्र प्राप्त करना)
    • सुहृद्भेद (मित्रता में फूट)
    • विग्रह (युद्ध और विरोध)
    • सन्धि (मेल-मिलाप)
  • विषय-वस्तु –
    • मित्रता, कर्तव्य, नैतिकता और राजनीति की शिक्षा
    • कहानियों के माध्यम से जीवन-दर्शन
    • बच्चों और युवाओं को संस्कार व नीति सिखाना
  • महत्व –
    • प्राचीन भारत का लोकप्रिय नीति-साहित्य
    • शिक्षा और राजनीति दोनों के लिए उपयोगी
    • कई भाषाओं की लोककथाओं पर प्रभाव
    • आज भी नैतिक शिक्षा के लिए पढ़ाया जाता है

पंचतंत्र (3rd Century BCE – माना जाता है)

  • लेखक – विष्णु शर्मा
  • काल – लगभग 3री शताब्दी BCE (कुछ विद्वान गुप्तकाल मानते हैं)
  • भाषा – संस्कृत
  • प्रकार – नीति साहित्य (कहानियों के माध्यम से शिक्षा)
  • उद्देश्य – राजकुमारों को नीति, राजनीति और जीवन-दर्शन सिखाना
  • संरचना (5 तंत्र) –
  • मित्रभेद – मित्रों में फूट डालने वाली बातें
  • मित्रलाभ – मित्र प्राप्त करने के उपाय
  • काकोलूकीयम् – कौए और उल्लुओं की कहानियाँ (राजनीति और युद्ध-नीति)
  • लाभानुशासनम् – लाभ और उसके अनुशासन की बातें
  • अपरीक्षितकारकाणि – बिना सोचे-समझे किए गए कार्यों के परिणाम
  • विषय-वस्तु –
  • जानवरों और पक्षियों की कहानियों के माध्यम से शिक्षा
  • मित्रता, राजनीति, नैतिकता और जीवन व्यवहार
  • सरल भाषा और रोचक शैली
  • महत्व –
  • विश्व का सबसे प्रसिद्ध नीति-कथा ग्रंथ
  • कई भाषाओं में अनुवाद हुआ (फ़ारसी, अरबी, ग्रीक, लैटिन आदि)
  • अरबी में इसका अनुवाद कलीला व दिमना नाम से हुआ
  • आज भी बच्चों की कहानियों और लोककथाओं की जड़ में पंचतंत्र का प्रभाव दिखता है
  • प्रकृति – मौखिक परंपरा, किसी एक लेखक की नहीं
  • विषय – जनजीवन, विश्वास, नैतिकता, अंधविश्वास
  • उदाहरण – दंतकथाएँ, गाथाएँ, कहावतें
  • महत्व – समाज और संस्कृति की झलक, शिक्षा व मनोरंजन का साधन।

कथासाहित्य और लोककथाएँ


बृहत्कथा-

बृहतकथा एक प्रसिद्ध गद्य रचना है, जिसे गुणाढ्य ने भूतभाषा (पैशाची)  में लिखा था। यह कथा संस्कृत, प्राकृत और अपभ्रंश से हटकर एक लोकभाषा में रची गई थी, क्योंकि गुणाढ्य ने इन तीन भाषाओं का त्याग कर दिया था।

गुणाढ्य सातवाहन राजा का मंत्री था। कथा के अनुसार, उसने वन में जाकर काणभूति नामक यक्ष से पूर्वजन्म की कहानियाँ सुनीं और उन्हें बृहत्कथा के रूप में लिखा।

इस ग्रन्थ का मूल रूप अब उपलब्ध नहीं है, परन्तु इसके आधार पर तीन प्रमुख संस्कृत रूपांतरण बने हैं—

1. कथासरित्सागर (सोमदेव)

2. बृहत्कथामंजरी (क्षेमेन्द्र)

3. बृहत्कथाश्लोकसंग्रह (बोधन)

नायक कौन है? → नरवाहनदत्त 

नरवाहनदत्त बृहत्कथा का मुख्य नायक है। इसका मतलब सिर्फ “मुख्य पात्र” नहीं है—बल्कि वो एक ऐसा चरित्र है जिसके जीवन की घटनाएँ, विवाह, यात्राएँ और विजय की कहानियाँ इस ग्रंथ का केंद्र हैं।

बृहत्कथा का नायक कौन है? → नरवाहनदत्त

नरवाहनदत्त किसका पुत्र था? → वत्सराज उदयन

उसके कितने विवाह हुए? → 26

किस ग्रंथ में उसका वर्णन है? → कथासरित्सागर, बृहत्कथामंजरी आदि

जातक कथाएँ (बौद्ध धर्म)

  • विषय – बुद्ध के पूर्व जन्मों की कथाएँ
  • काल – मौर्य काल से पूर्व ही लोकप्रिय (6th–4th Century BCE (बुद्ध काल से लेकर मौर्य काल पूर्व)
  • भाषा – पालि
  • उद्देश्य – नैतिकता, दान, सत्य और धर्म की शिक्षा
  • महत्व – बौद्ध धर्म प्रचार का प्रमुख साधन।

लोककथाएँ

अन्तर –

  • कथासाहित्य = लिखित ग्रंथ (गुणाढ्य, सोमदेव, क्षेमेन्द्र, बौद्ध जातक आदि)।
  • लोककथाएँ = मौखिक परंपरा (बिना लेखक, जनता में प्रचलित, जैसे ढोला-मारू, क्षेत्रीय किस्से, दंतकथाएँ)।

ये ब्लॉग बहुत जायदा ही बड़ा हो जा रहा है इसी वजह से आज के लिए हम यही पर रुकते है next part में हम बाकी चीजों को cover करते हैं, 

Next— काव्य और महाकाव्य साहित्य, संस्कृत गद्य साहित्य, ऐतिहासिक ग्रंथ, विज्ञान और गणित, नाटक और रंगमंच, महत्व

इन सभी topic पर अगला ब्लॉग जल्द ही हमारी site: aryahistory.com पर मिलेगी। अगर आपको किसी भी टॉपिक के बारे में कोई भी notes चाहिए तो आप हमसे संपर्क कर सकते हैं हम आपकी मदद करने की पूरी कोशिश करेंगे।

अगर आपको लौकिक साहित्य के बारे में कोई भी जानकारी नहीं है तो भी हम आपको पूरे लौकिक साहित्य के बारे 4 भागों में बांटकर बताएंगे —

लौकिक साहित्य Part —1

लौकिक साहित्य Part–2

(Final part)B — coming soon

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