🔰 इंट्रो——
पिछली बार वाले ब्लॉग (भाग 1) में ये तो क्लियर हो गया था कि इतिहास सिर्फ दादी-नानी की कहानियाँ या पौराणिक चमत्कारों का पिटारा नहीं है। असली बात तो ये है कि इतिहास जैसा कुछ है, तो वो है सबूतों के दम पर – चाहे वो किताबों में छिपा हो या ज़मीन के नीचे। हमने वहाँ पर ये भी समझा था कि साहित्यिक और पुरातात्विक स्रोत कितने ज़रूरी हैं इतिहास को समझने के लिए।
अब इस बार (भाग 2) में थोड़ा और गहराई में चलते हैं – जैसे कि टीला आखिर है क्या बला, खुदाई-फुदाई होती कैसे है, साइंटिफिक टेस्टिंग का क्या रोल है, और कैसे सिक्के, ताम्रपत्र, शिलालेख या वेद-पुराण वगैरह हमें अपने इतिहास से जोड़ते हैं।